सब अपनी धुन में गुम हैँ,
किसी को किसी के लिए फुर्सत नहीं।
किसे दोस्त कहूँ इस ज़माने में पता नहीं,
क्या खुदसे कहूँ पता नहीं।
ज़िन्दगी एक पहेली है,
साथ है किसका ये भी पता नहीं।
अकेले निकले हैं हम मुसाफिर बनके,
रास्ता भटक गए तो भी पता नहीं।
करते रहे एक मोड़ पे किसी का इंतज़ार,
मोड़ है गलत ये भी पता नहीं।
कहते हैं लोग रुक जाओ ठहर जाओ,
मंज़िल है कहाँ ये पता नहीं।
चले थे हम दिल में कुछ अरमान लिए,
पूरे होंगे या नहीं पता नहीं।
चलता रहे साँसों का ये कारवां,
कदम कब रुक जाये पता नहीं।
ज़िन्दगी और मौत का डर नहीं हमें,
हमसफ़र मिले या नहीं ये पता नहीं।
इन रास्तों पे है बस चलना सीखा,
रुकना है कब ये पता नहीं।